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पुरूष निःसंतानता के कारण और उपचार विकल्प

मुस्कुराइए, आप पिता बन सकते हैं !

पुरूष निःसंतानता के कारण और उपचार विकल्प

हमारे देश में पुरूषों की छवि ताकतवर इंसान के रूप में प्रस्तुत की जाती है इस स्थिति में किसी भी पुरूष लिए यह स्वीकार करना कि उसकी कमी के कारण पिता बनने में समस्या हो रही है मुश्किल होता है। निःसंतानता अब वैश्विक समस्या बनकर सामने आ रही है खासकर भारत में यह कम उम्र के पुरूषों को प्रभावित कर रही है। आंकड़ों के अनुसार महिला के समान एक तिहाई मामलों में पुरूष निःसंतानता के कारण संतान सुख नहीं मिल पाता है।
सामान्यतया कपल्स में यह धारणा होती है कि 1-2 महीने तक अनप्रोटेक्टेड सेक्स के बाद गर्भधारण नहीं हो रहा है तो इसका कारण ईश्वरीय अभिशाप है या निःसंतानता है और इसकी जिम्मेदार औरत है लेकिन फर्टिलिटी एक्सपर्ट के अनुसार एक साल तक बिना किसी गर्भनिरोधक के इस्तेमाल के गर्भधारण का प्रयास करने के बाद भी गर्भधारण नहीं हो रहा है तो यह निःसंतानता के लक्षण है जिसका कारण पति-पत्नी में से कोई भी हो सकता है या दोनों भी हो सकते हैं।
आमतौर पर पुरूष स्वयं को स्वस्थ मानते हैं लेकिन बाहर से स्वस्थ दिखने वाले पुरूष को ये पता नहीं होता कि ये जरूरी नहीं कि पिता बनने के लिए वे पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं। गर्भधारण के लिए पुरूष कुल शुक्राणुओं की संख्या, गतिशीलता, बनावट तथा जीवित शुक्राणुओं की संख्या मायने रखती है।
कितनी होनी चाहिए शुक्राणुओं की संख्या - विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार प्राकृतिक रूप से गर्भधारण के लिए पुरूष के वीर्य में शुक्राणुओं की न्यूनतम संख्या 15 मिलियन प्रति एमएल या इससे अधिक होनी चाहिए। प्राकृतिक रूप से गर्भधारण नहीं कर पा रहे पुरूषों के लिए सहायक प्रजनन तकनीक (असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्निक) अपने शुक्राणुओं से संतान प्राप्ति का आसान जरिया बन रही है, एआरटी में शुक्राणुओं की संख्या व गुणवत्ता के अनुरूप अलग-अलग तकनीकें उपलब्ध हैं।

पुरूष निःसंतानता से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

  • 1: लाईफ स्टाइल व तनाव

    काम का दबाव, करियर के दिन-रात दौड़भाग, देर तक काम करना, पारिवारिक या अन्य किसी तरह का तनाव, खराब खानपान पुरूष के शुक्राणुओं पर असर डालता है। निःसंतानता के बडे़ कारणों में आधुनिक जीवनशैली भी एक है।
  • 2: स्मोकिंग व नशा

    पिछले कुछ वर्षों में युवाओं में नशे व धूम्रपान की लत तेजी से बढ़ी है। स्मोकिंग और हेवी ड्रिंकिंग करने वाले पुरूषों में शुक्राणुओं के निर्माण तथा क्वालिटी पर इनका बुरा असर पड़ता है। चिकित्सक की सलाह के बिना लिये गये फुड सप्लिमेंट्स तथा स्टेरॉयड्स शुक्राणु के उत्पादन पर प्रभाव डालते हैं।
  • 3: हार्मोन असंतुलन

    पुरूष में शुक्राणुओं का बनना हार्मोन्स पर निर्भर करता है इसमें किसी भी तरह का असंतुलन होने पर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। मस्तिष्क के निर्देश पर पिट्यूटरी ग्रंथि और हाइपोथैलमस पुरूष हार्मोन का निर्माण करता है जो शुक्राणु उत्पादन को नियंत्रित करता है । एलएच और एफएसएच पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा बनाए गये महत्वपूर्ण संदेश वाहक हार्मोन हैं जो टेस्टीस पर कार्य करते हैं। ग्रंथि में अगर कोई विकार है तो सही आदेश नहीं मिल पाएगा और शुक्राणु बन नहीं पाएंगे।
  • 4: अण्डकोष (टेस्टिकल्स) में दर्द या संक्रमण

    जिस प्रकार गर्भधारण के लिए महिला के अण्डाशय का महत्वूपर्ण रोल है उसी प्रकार पुरूषों में अण्डकोष का कार्य भी काफी महत्व रखता है। टेस्टिकल्स में दर्द को वेरिकोसिल कहा जाता है इसमें टेस्टिकल्स के आसपास की नसों में वृद्धि होने लगती है या सूजन की स्थिति किसी बीमारी या माइकोप्लाज्मा, गोनोरिया, क्लैमाइडिया, मूत्र मार्ग में संक्रमण शुक्राणु के उत्पादन, गुणवत्ता, संख्या और वितरण को प्रभावित करते हैं।
  • 5: इरेक्टाइल डिसफंक्शन और इजेक्यूलेशन प्रोब्लम

    सामान्यतया इन दोनों समस्याओं से प्रभावित पुरूषों को ये पता नहीं होता है कि इनका सीधा संबंध फर्टिलिटी से है। कई मामलों में संभोग के दौरान वीर्य स्खलित होकर बाहर आने की बजाय मूत्राशय में चला जाता है। कुछ मामलों संबंध बनाने में परेशानी या वीर्य नहीं निकलना जैसी समस्याएं भी सामने आती हैं।
    इसके अलावा गर्म स्थानों पर काम करना, गोद में लेपटॉप रखकर लम्बे समय तक काम करना, अण्डाकोष में पुरानी चोट या संक्रमण, टीबी या कैंसर का उपचार, बहुत देर तक गर्म पानी में बैठना, मोटापा आदि पुरूषों के शुक्राणुओं को प्रभावित करते हैं।

पुरूष निःसंतानता स्थिति में गर्भधारण के लिए उपचार तकनीकें

  • जो पुरूष किसी कारण से पिता नहीं बन पा रहे हैं उनके लिए सहायक प्रजनन तकनीक उपलब्ध हैं जिनका समस्या के अनुरूप चयन करके पिता बनने की राह को सुलभ किया जा सकता है। पुरूष निःसंतानता के मामलों में एआरटी की कुछ तकनीकों का प्रयोग किया जा सकता है।
  • आईयूआई - महिला की सारी रिपोर्ट्स नोर्मल हो, पुरूष के वीर्य में शुक्राणु सामान्य से थोडे़े कम यानि 10 से 15 मिलियन प्रति एमएल हो ऐसी स्थिति में यह तकनीक अपनायी जा सकती है। इसमें पति के पुष्ट शुक्राणुओं का चयन कर उन्हें एक निडल की सहायता से महिला के गर्भाशय में ओव्युलेशन के समय इंजेक्ट किया जाता है जिससे गर्भधारण हो जाता है ।
  • आईवीएफ - जिन पुरूषों में शुक्राणुओं की संख्या 5 से 10 मीलियन प्रति एमएल है वे आईवीएफ तकनीक अपना सकते हैं इसकी सफलता दर अधिक है। वे दम्पती जिन्हें आईयूआई में सफलता नहीं मिली है वे भी आईवीएफ तकनीक की ओर रूख कर सकते हैं। इसमें महिला के अण्डाशय में सामान्य से अधिक अण्डे बनाकर उन्हें निकालकर लैब में रखा जाता है और लैब में पुरूष के शुक्राणुओं से निषेचित करवाया जाता है जिससे भ्रूण बन जाता है जिसे बाद में महिला के यूट्रस में ट्रांसफर किया जाता है।
  • इक्सी - वे पुरूष जिनके शुक्राणुओं की संख्या काफी कम यानि 1 से 5 मीलियन प्रति एमएल तक है वे इक्सी तकनीक से पिता बन सकते हैं। इसमें लैब में इंजेक्शन की सहायता से एक शुक्राणु को महिला के अण्डे में इंजेक्ट किया जाता है इसमें निषेचन की संभावना अधिक होती है।
  • टेस्टिक्यूलर बायोप्सी - शून्य यानि निल शुक्राणु की स्थिति में वे पुरूष जिनमें अण्डकोष में शुक्राणु बनते तो हैं लेकिन बाहर नहीं आ पाते हैं वे अपने शुक्राणओं से इस तकनीक से पिता बन सकते हैं । इसमें सीधे अण्डकोष से शुक्राणु लेकर इक्सी तकनीक के माध्यम से फर्टिलाइजेशन की प्रक्रिया की जाती है।
  • वे पुरूष जो शुक्राणुओं की कमी या गुणवत्ता में कमी के कारण संतान सुख प्राप्त करने में विफल रहे हैं वे आईवीएफ या इसकी विभिन्न तकनीकों से पिता बन सकते हैं।
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