निःसंतानता लाइलाज नही, उपचार संभव

निःसंतानता लाइलाज नही, उपचार संभव आईवीएफ से करें संतान सुख की राह को आसान

किसी भी दम्पती का परिवार तभी पूरा माना जाता है जब उनकी गोद में खुद की संतान हो लेकिन ये सुख सभी को नहीं मिल पाता है। कुछ वर्षों तक गर्भधारण में असफल होने पर दम्पती को ये पता ही नहीं चलता है कि वे निःसंतानता से प्रभावित हैं। अंतिम दो-तीन दशकों की बात करें तो कम उम्र के महिला-पुरूष भी निःसंतानता के कारण गर्भधारण करने में विफल हो रहे हैं। दम्पती प्राकृतिक रूप से गर्भधारण करने के लिए वर्षों तक प्रयास करते हैं लेकिन सफलता नहीं मिलने पर उन्हें लगता है अब वे कभी माता-पिता नहीं बन पाएंगे जबकि एडवांस्ड मेडिकल साइंस में ऐसे कई उपचार उपलब्ध हैं विशेष रूप से ART असिस्टेड रिप्रोडक्टिव तकनीक या आईवीएफ से संतान सुख प्राप्त करना संभव है और दुनिया में इस तकनीक का उपयोग करके लाखो निःसंतान दंपत्ति माता-पिता बन चुके हैं।

डॉक्टर से करें बात -

जब दंपत्ति को बिना किसी गर्भनिरोधक का उपयोग किये कंसीव करने का ट्राय करते हुए एक साल या इससे अधिक समय हो गया हो फिर भी गर्भधारण नहीं हो रहा हो ऐसी स्थिति में उन्हें डॉक्टर से कन्सल्ट करना चाहिए । कई कपल्स ऐसे भी होते हैं जिन्हें गर्भधारण हो जाता है लेकिन इसके बाद बार-बार गर्भपात हो जाता है उन्हें भी समय गवाएं बिना एक्सपर्ट डॉक्टर से बात करनी चाहिए।

इनफर्टिलिटी समस्या किसमें है -

गर्भधारण नहीं होने के कारण जानने के लिए डॉक्टर द्वारा पति-पत्नी दोनों की फर्टिलिटी जांचे की जाती हैं। महिला के अण्डाशय, फैलोपियन ट्यूब, गर्भाशय और कुछ खून की जांचे की जाती हैं वहीं पुरूष का सीमेन एनालिसिस किया जाता है। दम्पती की जांच रिपोर्ट के आधार पर यह पता चलता है कि निःसंतानता किसकी वजह है इसके उपरान्त उपचार प्रक्रिया का निर्धारण किया जाता है।

आईवीएफ किसके लिए उपयोगी -

ऐसे कपल्स जिन्हें कंसीव करने में समस्या हो रही है जबकि दोनों की रिपोर्ट नोर्मल है, औरत की ट्यूब्स बंद होना या उनमें संक्रमण होना, ट्यूब में पानी भरना, पीरियड्स अनियमित होना, ओव्युलेशन संबंधी समस्या, पीसीओएस, एण्डोमेट्रियोसिस, एडिनोमायोसिस की समस्या, पहले टीबी या कैंसर जैसी बीमारी रही हो, अधिक उम्र हो, एक बार संतान होने या कंसीव होने के बाद दूसरी बार गर्भधारण में कठिनाई होने पर तथा पुरूष जिनके शुक्राणु की संख्या कम हो, क्वालिटी में कमी हो या फिर निल शुक्राणु हो। गर्भधारण होने के बाद बार बार गर्भपात हो जाने में भी यह इलाज उपयोगी साबित हो सकता है।
 
जो भी कपल आईवीएफ करवाना चाहते हैं उनके लिए आईवीएफ हॉस्पिटल का चुनाव करना सबसे महत्वपूर्ण डिसीजन होता है। सही अस्पताल का चयन करना उन्हें अधिक सफलता संभावना प्रदान करता है।

आइए समझते हैं आईवीएफ प्रक्रिया को

कपल की जांच के बाद यदि आईवीएफ प्रक्रिया उचित लगती है तो आईवीएफ के तहत कुछ प्रक्रियाओं से गुजरना होता है -
 
1: अधिक अण्डों का विकसित करना और बाहर निकलना
औरत के अण्डाशय में हर महीने नेचुरली कुछ अण्डों में से एक अण्डा मैच्योर होता है जबकि आईवीएफ यानि टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया में इंजेक्शन और दवाइयां देकर एक से ज्यादा अंडे बनाए जाते हैं ताकि अधिक एम्ब्रियो बनाए जा सके। अण्डे बनाने की प्रक्रिया के दौरान जांचो के माध्यम से उन्हें समय-समय पर देखा जाता है। अण्डे परिपक्व होने पर उन्हें अल्ट्रासाउंड इमेजिंग के माध्यम से एक पतली सुई की मदद से निकाल लिया जाता है और संतुलित वातावरण में लैब में रखा जाता है।
 
2: अण्डे का निषेचन
आईवीएफ प्रक्रिया में अण्डे को निषेचित करने का कार्य शरीर से बाहर लैब में किया जाता है। निषेचन के लिए मेल पार्टनर से सीमेन का सेम्पल लेकर लैब में अच्छे शुक्राणुओं को अलग किया जाता है फिर लैब में महिला के अण्डों को निषेचित करने के लिए इन शुक्राणुओं को अण्डों के सामने छोड़ा जाता है। जिससे शुक्राणु अण्डे में प्रवेश कर जाता है और निषेचन की प्रक्रिया पूरी हो जाती है। वे पुरूष जिनके वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या 5 से 10 मीलियन प्रति एमएल है उनके लिए आईवीएफ फायदेमंद साबित हो सकती है । जिन पुरुषों के वीर्य में शुक्राणु की संख्या से 1 से 5 मिलियन प्रति एमएल है उनके लिए इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन (इक्सी) अधिक उपयोगी साबित हो सकती है। इक्सी में सफलता की संभावना इसलिए भी ज्यादा होती है क्योंकि इसमें एक अण्डे में एक शुक्राणु को इंजेक्ट किया जाता है।
 
3: भ्रूण का विकसित होना और स्थानान्तरण
निषेचन होने के बाद अण्डा इन्क्यूबेटर में विभाजित होता है । ये अण्डा 2-3 दिन बाद 6 से 8 सेल के भ्रूण में बदल जाता है। भ्रूण बनने और विकसित होने पर प्रक्रिया पर नजर रखने वाले भ्रूण वैज्ञानिक इन भ्रूणों में से अच्छी क्वालिटी के एम्ब्रियो को यूट्रस में ट्रांसफर करने के लिए सेलेक्ट करते हैं। आईवीएफ में आमतौर पर 3 दिन के भ्रूण को यूट्रस में ट्रांसफर किया जाता है लेकिन यदि इसको ब्लास्टोसिस्ट स्टेज यानि 5 दिन तक लैब में विकसित करने के बाद स्थानान्तरित किया जाए तो सफलता के आसार अधिक होते हैं। एम्ब्रियोलॉजिस्ट अच्छे भ्रूण को महिला की योनि मार्ग से एक पतली नली के जरिए गर्भाशय में स्थानान्तरित कर देते हैं। भ्रूण बच्चेदानी की दीवार से चिपक जाता है और इप्लांटेशन की प्रोसेस पूरी हो जाती है। आईवीएफ में भ्रूण बनने की प्रक्रिया महिला के शरीर के बाहर होती है इसके बाद की सारी प्रक्रिया नेचुरल प्रेगनेंसी के समान ही है।
 
आईवीएफ में भ्रूण स्थानान्तरण के दो सप्ताह बाद प्रेगनेंसी टेस्ट बीटा एचसीजी किया जाता है। आईवीएफ प्रेगनेंसी भी सामान्य प्रेगनेंसी के समान ही होती है इसके लिए विशेष सावधानी की आवश्यकता नहीं होती है।
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