क्या है आईवीएफ प्रक्रिया

क्या है आईवीएफ प्रक्रिया ? - स्पर्श आईवीएफ

टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया [आई.वी.एफ.] यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अण्डे व शुक्राणुओं को शरीर से बाहर फर्टिलाइज कराया जाता है। इस प्रक्रिया में महिला के अण्डाशय में सामान्य से अधिक अण्डे विकसित किए जाते हैं। जिन्हें सही समय आने पर महिला को कुछ समय बेहोश कर अल्ट्रासाउण्ड मशीन की सहायता से एक पतली सुई द्वारा अण्डाशय से बाहर निकाल लिया जाता है। जिसके बाद एम्ब्रियोलॉजी लैब में फर्टिलाइज करवाकर भ्रूण विकसित किया जाता है और इस भ्रूण को 2-5 दिन लैब में ही विकसित कर महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। भ्रूण प्रत्यारोपण के बाद की प्रक्रिया सामान्य प्रक्रिया की तरह होती है।
 

1. अण्डों को बढ़ाना

आईवीएफ की पूरी प्रोसेस में दो से तीन हफ्तों का समय लगता है। इसमें डॉक्टर की सलाह, चेकअप, रिपोर्ट की दोबारा जांच, स्टीमुलेशन, अंडों और शुक्राणुओं का संग्रह और अंत में निषेचन के बाद भ्रूण का गर्भ में प्रत्यारोपण शामिल है। इसकी सफलता असफलता का पता अगले 14 दिनों में रक्त परीक्षण या प्रेग्नेंसी टेस्ट के बाद लगता है। दुनिया भर में इस तकनीक को अपनाया जा रहा है। कई दंपत्ति ऐसे हैं, जिनको समय से संतान सुख नहीं मिल पाता है। कई तरह के इलाज से भी उन्हें कोई फायदा नहीं होता। ऐसे में आईवीएफ यानि इन विट्रो फर्टीलाइजेशन की मदद से गर्भधारण कराया जा सकता है। प्राकृतिक तौर पर औरत के अंडाशय में एक महीने के दौरान एक ही अंडा बनता है, लेकिन आई.वी.एफ. प्रक्रिया में महिलाओं को ऐसी दवाइयां दी जाती है जिनकी सहायता से उनके अंडाशय में एक से अधिक अंडे बनने लगते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान महिला के अल्ट्रासाउंड कराए जाते हैं ताकि अण्डों की बढ़त को जांचा जा सके। अधिक अण्डे इसलिए जरूरी है ताकि उनसे ज्यादा से ज्यादा भ्रूण बनाए जा सकें जिनमें से सबसे अच्छे भ्रूण का चयन कर प्रत्यारोपण किया जा सके।
 

2. अण्डे को निकालना

अण्डों को शरीर से बाहर निकालने के लिए महिला को 10 से 15 मिनट के लिए बेहोश किया जाता है। अल्ट्रासाण्ड इमेजिंग की निगरानी में एक पतली सुई की मदद से अण्डे टेस्ट ट्यूब में एकत्रित किए जाते हैं जो कि लेब में दे दिए जाते हैं। इस प्रक्रिया के बाद कुछ ही घंटों में महिला अपने घर जा सकती है।
 

3. अण्डा फर्टिलाइजेशन

लेब में पुरुष के वीर्य से पुष्ट शुक्राणु अलग किए जाते हैं तथा महिला से निकले अण्डे से निषेचन कराया जाता है। भ्रूण वैज्ञानिक निषेचन के लिए आई.वी.एफ. प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हैं। जिन पुरुषों के शुक्राणुओं की मात्रा सामान्य होती है व जिन पुरुषों में शुक्राणु की मात्रा काफी कम होती है (1-10 मिलियन/एमएल) उनके लिए इक्सी प्रक्रिया अपनाई जाती है जिसमें एक अण्डे को पकड़, एक शुक्राणु उसके अंदर इन्जेक्ट किया जाता है। फर्टिलाइजेशन प्रक्रिया के बाद अण्डे को विभाजित होने के लिए इन्क्यूबेटर में रख दिया जाता है।
 
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4. भ्रूण विकास

भ्रूण वैज्ञानिक इन्क्यूबेटर में विभाजित हो रहे भ्रूण को अपनी निगरानी में रखते हैं व उसका विकास समय-समय पर देखते हैं। 2-3 दिन बाद यह अण्डा 6 से 8 सेल के भ्रूण में परिवर्तित हो जाता है। इन भ्रूण में से अच्छी गुणवत्ता वाले 1-3 भ्रूण प्रत्यारोपण के लिए चयन करते हैं। कई मरीजों में इन भ्रूण को 5-6 दिन लेब में पोषित कर ब्लास्टोसिस्ट बना लिया जाता है जिससे सफलता की संभावना बढ़ जाती है।
 

5. भ्रूण प्रत्यारोपण

भ्रूण वैज्ञानिक विकसित भ्रूण या ब्लास्टोसिस्ट में से 1-3 अच्छे भ्रूण का चयन कर उन्हें भ्रूण ट्रांसफर केथेटर में ले लेते हैं। डॉक्टर इस केथेटर को महिला के गर्भाशय में निचे के रस्ते से डालकर एक पतली नली के जरिए उन भ्रूण को बड़ी सावधानी से अल्ट्रासाउण्ड इमेजिंग की निगरानी में औरत के गर्भाशय में छोड़ देते हैं। इस प्रक्रिया में दर्द नहीं होता।
 
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